भारत की माता
एक वीरांगना की भाती तुम चलती ,
जितने वाली तुम माता ,
कभी झाँसी की रानी बनकर ,
तुमने सिंघासन हिला डाला ,
सिंह की भाती चलते रहना ,
मेरे भारत की साहसी माता।
कभी काली का रूप बनाती ,
दुष्टो को संघार डाला ,
अाग की अंगार की भाति ,
बुराई को जला डाला ,
बुराई को जला डाला ,
तुम्हारे वीरता को मैं करता नमन ,
मेरे भारत की साहसी माता।
तुम विश्व की जननी जैसी ,
सृष्टि की रचियता ,
पालन पोषड़ सबका करती ,
प्रेम अमृत बरसा डाला ,
हे माँ तुम्हे करता सर मस्तक ,
मेरे भारत की साहसी माता।
मर्दो से कन्धा मिला चलती ,
सबको पीछे कर डाला ,
हर छेत्र में प्रथम तुम रहती ,
तुमने कला को निखारा ,
बस युही चलते रहना,
मेरे भारत की साहसी माता।
पालन पोषड़ सबका करती ,
प्रेम अमृत बरसा डाला ,
हे माँ तुम्हे करता सर मस्तक ,
मेरे भारत की साहसी माता।
मर्दो से कन्धा मिला चलती ,
सबको पीछे कर डाला ,
हर छेत्र में प्रथम तुम रहती ,
तुमने कला को निखारा ,
बस युही चलते रहना,
मेरे भारत की साहसी माता।
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