भारत की माता
एक वीरांगना की भाती तुम चलती ,
जितने वाली तुम माता ,
कभी झाँसी की रानी बनकर ,
तुमने सिंघासन हिला डाला ,
सिंह की भाती चलते रहना ,
मेरे भारत की साहसी माता।
कभी काली का रूप बनाती ,
दुष्टो को संघार डाला ,
अाग की अंगार की भाति ,
बुराई को जला डाला ,
तुम्हारे वीरता को मैं करता नमन ,
मेरे भारत की साहसी माता।
तुम विश्व की जननी जैसी ,
सृष्टि की रचियता ,
पालन पोषड़ सबका करती ,
प्रेम अमृत बरसा डाला ,
हे माँ तुम्हे करता सर मस्तक ,
मेरे भारत की साहसी माता।
मर्दो से कन्धा मिला चलती ,
सबको पीछे कर डाला ,
हर छेत्र में प्रथम तुम रहती ,
तुमने कला को निखारा ,
बस युही चलते रहना,
मेरे भारत की साहसी माता।
बुराई को जला डाला ,
पालन पोषड़ सबका करती ,
प्रेम अमृत बरसा डाला ,
हे माँ तुम्हे करता सर मस्तक ,
मेरे भारत की साहसी माता।
मर्दो से कन्धा मिला चलती ,
सबको पीछे कर डाला ,
हर छेत्र में प्रथम तुम रहती ,
तुमने कला को निखारा ,
बस युही चलते रहना,
मेरे भारत की साहसी माता।
क्या है ज़िन्दगी
किसी बेघर से पूछा ,
किसी प्यासे से पूछा ,
किसी कमज़ोर से पूछा ,
क्या है ज़िन्दगी ।
किसी मरते जवान से पूछा ,
किसी रोते किसान से पूछा ,
किसी गरीब से पूछा ,
क्या है ज़िन्दगी ।
किसी मरते हिरण से पूछा ,
किसी कत्ल खाने की गाय से पूछा ,
किसी हलाल होते जीव से पूछा ,
क्या है ज़िन्दगी ।
किसी रेगिस्तान के बच्चे से पूछा ,
किसी बेबस मज़दूर से पूछा ,
किसी पर्वत पर फसे इंसान से पूछा ,
क्या है ज़िन्दगी।
किसी विधवा से पूछा ,
किसी मरे बेटे के पिता से पूछा ,
किसी शहीद की माँ से पूछा ,
क्या है ज़िन्दगी।
किसी दहेज़ प्रताड़ित बेटी से पूछा ,
किसी रेप प्रताड़ित लड़की से पूछा ,
किसी पति प्रताड़ित पत्नी से पूछा ,
क्या है ज़िन्दगी।
किसी मुस्कुराते संत से पूछा ,
किसी मासूम शिशु से पूछा ,
किसी चहकते विकलांग से पूछा ,
क्या है ज़िन्दगी।
इस धरती माँ से पूछा ,
किसी मरते नौजवान से पूछा ,
और अपनी ज़िन्दगी की चलती राहों से पूछा ,
क्या है ज़िन्दगी।
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