सब से छूटा
सब में अलग
दर्द में सहमा
मैं अकेला।
यूही रूका
कल से झूझता
अब तो रोता
मैं अकेला।
सब्र से बैठा
मन को टटोलता
शांत सा बैठा
मैं अकेला।
सुगम निगम का भाव लेकर
किसी का इंतज़ार करता
बस मूक सा लह्मा
मैं अकेला।
जैसा आया था
वैसा ही जाना था
बस जाने का इंतज़ार करता
मैं अकेला।
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